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हम-नफ़स ख़्वाब-ए-जुनूँ की कोई ता'बीर न देख | शाही शायरी
ham-nafas KHwab-e-junun ki koi tabir na dekh

ग़ज़ल

हम-नफ़स ख़्वाब-ए-जुनूँ की कोई ता'बीर न देख

अब्दुल मतीन नियाज़

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हम-नफ़स ख़्वाब-ए-जुनूँ की कोई ता'बीर न देख
रक़्स करना है तो फिर पाँव की ज़ंजीर न देख

तू किसी हुस्न-ए-जहाँ-सोज़ की तस्वीर न देख
अपने गुज़रे हुए हालात की तफ़्सीर न देख

हुस्न-ए-तदबीर से तक़दीर बदल दे अपनी
जो है हालात से मंसूब वो तक़दीर न देख

तू परस्तार-ए-अमल है तो अमल की ख़ातिर
ख़्वाब-ए-रंगीं की क़सम ख़्वाब की ता'बीर न देख

रज़्म-ए-हस्ती से गुज़रना है अगर तुझ को 'नियाज़'
ज़ुल्मत-ए-शब को समझ सुब्ह की तनवीर न देख