हम न छोड़ेंगे मोहब्बत तिरी ऐ ज़ुल्फ़-ए-सियाह
सर चढ़ाया है तू क्या दिल से गिराएँ तुझ को
छोड़ कर हम को मिला शम्अ-रुख़ों से जा कर
इसी क़ाबिल है तू ऐ दिल कि जलाएँ तुझ को
दर्द-ए-दिल कहते हुए बज़्म में आता है हिजाब
तख़लिया हो तो कुछ अहवाल सुनाएँ तुझ को
अपने माशूक़ की सुनता है बुराई कोई
क्यूँ न हम बिगड़ें जो अग़्यार बनाएँ तुझ को
रूठता हूँ जो कभी मैं तो ये कहता है वो शोख़
क्या ग़रज़ हम को पड़ी है जो मनाएँ तुझ को
तू ने अग़्यार से आईना मँगा कर देखा
दिल में आता है कि अब मुँह न दिखाएँ तुझ को
ग़ज़ल
हम न छोड़ेंगे मोहब्बत तिरी ऐ ज़ुल्फ़-ए-सियाह
लाला माधव राम जौहर