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हम में भी और उन्हों में पहले जो यारियाँ थीं | शाही शायरी
hum mein bhi aur unhon mein pahle jo yariyan thin

ग़ज़ल

हम में भी और उन्हों में पहले जो यारियाँ थीं

नज़ीर अकबराबादी

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हम में भी और उन्हों में पहले जो यारियाँ थीं
दोनों दिलों में क्या क्या उम्मीदवारियाँ थीं

वो मुंतज़िर कि आवें हम पुर-तपिश कि जावें
इस ढब की हर दो जानिब बे-इख़्तियारियाँ थीं

न ज़ब्त है निगह का न रुक सके नज़ारा
क्या शौक़-वर्ज़ियाँ थीं क्या बे-क़रारियाँ थीं

उठने में बैठने में हँसने में बोलने में
कुछ बे-शुऊरियाँ थीं कुछ होशयारियाँ थीं

जिस जा 'नज़ीर' आ कर होती हैं उल्फ़तें तो
वाँ ऐसी ऐसी कितनी इशरत-शिआरियाँ थीं