EN اردو
हम को तो बे-सवाल मिले बे-तलब मिले | शाही शायरी
hum ko to be-sawal mile be-talab mile

ग़ज़ल

हम को तो बे-सवाल मिले बे-तलब मिले

कलीम आजिज़

;

हम को तो बे-सवाल मिले बे-तलब मिले
हम वो नहीं हैं साक़ी कि जब माँगें तब मिले

फ़रियाद ही में अहद-ए-बहाराँ गुज़र गया
ऐसे खुले कि फिर न कभी लब से लब मिले

हम ये समझ रहे थे हमीं बद-नसीब हैं
देखा तो मय-कदे में बहुत तिश्ना-लब मिले

किस ने वफ़ा का हम को वफ़ा से दिया जवाब
इस रास्ते में लूटने वाले ही सब मिले

मिलते हैं सब किसी न किसी मुद्दआ' के साथ
अरमान ही रहा कि कोई बे-सबब मिले

रक्खा कहाँ है इश्क़ ने 'आजिज़' को होश में
मत छेड़ियो अगर कहीं वो बे-अदब मिले