हम कि अफ़्कार को तज्सीम किया करते हैं
हर्फ़-ओ-अल्फ़ाज़ की तहरीम किया करते हैं
बंद कर लेते हैं आवारा हवा मुट्ठी में
फिर फ़ज़ा में उसे तक़्सीम किया करते हैं
वक़्त जब हाथ नहीं आता तो रोज़-ओ-शब में
इंतिक़ामन उसे तक़्वीम किया करते हैं
कब सितारा कोई माथे की शिकन में उतरा
सब फ़ुसूँ साहब-ए-तंजीम किया करते हैं
हम को इल्ज़ाम न दीजे कोई 'शाकिर'-कुंडान
हम तो निस्बत की भी तकरीम किया करते हैं
ग़ज़ल
हम कि अफ़्कार को तज्सीम किया करते हैं
शाकिर कुंडान