हम करें बात दलीलों से तो रद्द होती है
उस के होंटों की ख़मोशी भी सनद होती है
साँस लेते हुए इंसाँ भी हैं लाशों की तरह
अब धड़कते हुए दिल की भी लहद होती है
जिस की गर्दन में है फंदा वही इंसान बड़ा
सूलियों से यहाँ पैमाइश-ए-क़द होती है
शो'बदा-गर भी पहनते हैं ख़तीबों का लिबास
बोलता जहल है बद-नाम ख़िरद होती है
कुछ न कहने से भी छिन जाता है एजाज़-ए-सुख़न
ज़ुल्म सहने से भी ज़ालिम की मदद होती है
ग़ज़ल
हम करें बात दलीलों से तो रद्द होती है
मुज़फ़्फ़र वारसी