EN اردو
हम हथेली पे जान रखते हैं | शाही शायरी
hum hatheli pe jaan rakhte hain

ग़ज़ल

हम हथेली पे जान रखते हैं

बशीर महताब

;

हम हथेली पे जान रखते हैं
और तेरी अमान रखते हैं

चंद अश्कों के वास्ते साहब
तेरी बातों का मान रखते हैं

तुम गुज़रते हो अजनबी बन कर
हम तो दिल पर चटान रखते हैं

जो भी हैं हम बस इक हमीं हैं हम
दोस्त क्या क्या गुमान रखते हैं

मीठी बातों से क्या उन्हें मतलब
हर घड़ी सीना तान रखते हैं

कितने शातिर हैं वो मिरे हम-दम
दिल में तीर-ओ-कमान रखते हैं

ख़ामुशी मस्लहत रही 'महताब'
वर्ना हम भी ज़बान रखते हैं