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हम हैं सर-ता-बा-पा तमन्ना | शाही शायरी
hum hain sar-ta-ba-pa tamanna

ग़ज़ल

हम हैं सर-ता-बा-पा तमन्ना

सीमाब अकबराबादी

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हम हैं सर-ता-बा-पा तमन्ना
कैसी उम्मीद क्या तमन्ना

हो कितनी ही ख़ुश-गवार फिर भी
है दिल के लिए बला तमन्ना

देते हो पयाम-ए-आरज़ू तुम
जब तर्क मैं कर चुका तमन्ना

दुनिया को फ़रेब दे रही है
जल्वा है सराब का तमन्ना

अपनी मंज़िल पे हम न पहुँचे
जब तक रही रहनुमा तमन्ना

माबैन-ए-निगाह-ओ-जल्वा-ए-हुस्न
है एक हिजाब सा तमन्ना

उलझा रहा आरज़ू में ग़ाफ़िल
क्यूँ ख़ुद ही न बन गया तमन्ना

आवाज़ तो दो किसे पुकारूँ
तुम हो मिरे दिल में या तमन्ना

'सीमाब' मआल-ए-शौक़ मालूम
अम-लिल-इंसान-ए-मा-तमन्ना