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हम हैं मंज़र सियह आसमानों का है | शाही शायरी
hum hain manzar siyah aasmanon ka hai

ग़ज़ल

हम हैं मंज़र सियह आसमानों का है

राजेन्द्र मनचंदा बानी

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हम हैं मंज़र सियह आसमानों का है
इक इताब आते जाते ज़मानों का है

एक ज़हराब-ए-ग़म सीना सीना सफ़र
एक किरदार सब दास्तानों का है

किस मुसलसल उफ़ुक़ के मुक़ाबिल हैं हम
क्या अजब सिलसिला इम्तिहानों का है

फिर वही है हमें मिट्टियों की तलाश
हम हैं उड़ता सफ़र अब ढलानों का है

कौन से मारके हम ने सर कर लिए
ये नशा सा हमें किन तकानों का है

ये अलग बात वो कुछ बताए नहीं
लेकिन उस को पता सब ख़ज़ानों का है

सब चले दूर के पानियों की तरफ़
क्या नज़ारा खुले बादबानों का है

उस की नज़रों में सारे मक़ामात हैं
पर उसे शौक़ अंधी उड़ानों का है

आओ 'बानी' कि ख़्वाजा के दर को चलें
आस्ताना हज़ार आस्तानों का है