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हम हैं बस इज़्न-ए-सफ़र होने तक | शाही शायरी
hum hain bas izn-e-safar hone tak

ग़ज़ल

हम हैं बस इज़्न-ए-सफ़र होने तक

फ़रताश सय्यद

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हम हैं बस इज़्न-ए-सफ़र होने तक
ख़ाक और ख़ाक-ब-सर होने तक

कैसे कैसे हैं मराहिल दरपेश
अपने होने की ख़बर होने तक

क्या अजब वस्ल की ख़्वाहिश न रहे
हिज्र की रात बसर होने तक

दिल-ए-ख़ुश-फ़हम तिरी ख़ुश-फ़हमी
मुंतशिर गर्द-ए-सफ़र होने तक

सर-ब-सज्दा हैं दर-ए-'ग़ालिब' पर
ख़ुश-सुख़न अहल-ए-नज़र होने तक