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हम हैं और ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ है आज-कल | शाही शायरी
hum hain aur zabt-e-fughan hai aaj-kal

ग़ज़ल

हम हैं और ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ है आज-कल

अर्जुमंद बानो अफ़्शाँ

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हम हैं और ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ है आज-कल
सब्र का फिर इम्तिहाँ है आज-कल

हम से रूठा है तो फिर किस से है ख़ुश
किस पे आख़िर मेहरबाँ है आज-कल

दिल भी पज़मुर्दा है आँखें मुज़्महिल
याद बस तेरी जवाँ है आज-कल

एक वा'दे पर मिटा दी ज़िंदगी
हम सा दीवाना कहाँ है आज-कल

घिर गए हम वक़्त के तूफ़ान में
ऐ ग़म-ए-जानाँ कहाँ है आज-कल

मुल्तफ़ित गुलचीं हैं न सय्याद ख़ुश
बर्क़ भी ना-मेहरबाँ है आज-कल

एक तो मुश्किल वफ़ा के मरहले
और फिर दुश्मन जहाँ है आज-कल

दिल शिकस्ता एक 'अफ़्शाँ' ही नहीं
कौन है जो नग़्मा-ख़्वाँ है आज-कल