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हम दुनिया से जब तंग आया करते हैं | शाही शायरी
hum duniya se jab tang aaya karte hain

ग़ज़ल

हम दुनिया से जब तंग आया करते हैं

तैमूर हसन

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हम दुनिया से जब तंग आया करते हैं
अपने साथ इक शाम मनाया करते हैं

सूरज के उस जानिब बसने वाले लोग
अक्सर हम को पास बुलाया करते हैं

यूँही ख़ुद से रूठा करते हैं पहले
देर तलक फिर ख़ुद को मनाया करते हैं

चुप रहते हैं उस के सामने जा कर हम
यूँ उस को चख याद दिलाया करते हैं

नींदों के वीरान जज़ीरे पर हर शब
ख़्वाबों का इक शहर बसाया करते हैं

इन ख़्वाबों की क़ीमत हम से पूछ कि हम
इन के सहारे उम्र बिताया करते हैं

अब तो कोई भी दूर नहीं तो फिर 'तैमूर'
हम ख़त किस के नाम लिखाया करते हैं