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हम दिल ओ जाँ से ख़रीदार हैं किन के उन के | शाही शायरी
hum dil o jaan se KHaridar hain kin ke un ke

ग़ज़ल

हम दिल ओ जाँ से ख़रीदार हैं किन के उन के

मोहम्मद अमान निसार

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हम दिल ओ जाँ से ख़रीदार हैं किन के उन के
बाइस-ए-गर्मि-ए-बाज़ार हैं किन के उन के

ये ख़ुदा जाने किसी को है ख़बर या कि नहीं
हम भी इक आशिक़-ए-ग़म-ख़्वार हैं किन के उन के

मक़्तल-ए-इश्क़ में हम रोज़-ए-अज़ल से यारो
बिस्मिल-ए-ग़मज़ा-ए-ख़ूँ-ख़्वार हैं किन के उन के

था जिन्हें हुस्न-परस्ती से हमेशा इंकार
वो भी अब तालिब-ए-दीदार हैं किन के उन के

हम को अय्यार समझते हैं ये बे-मेहर 'निसार'
जो दग़ाबाज़ हैं सो यार हैं किन के उन के