हम दिल ओ जाँ से ख़रीदार हैं किन के उन के
बाइस-ए-गर्मि-ए-बाज़ार हैं किन के उन के
ये ख़ुदा जाने किसी को है ख़बर या कि नहीं
हम भी इक आशिक़-ए-ग़म-ख़्वार हैं किन के उन के
मक़्तल-ए-इश्क़ में हम रोज़-ए-अज़ल से यारो
बिस्मिल-ए-ग़मज़ा-ए-ख़ूँ-ख़्वार हैं किन के उन के
था जिन्हें हुस्न-परस्ती से हमेशा इंकार
वो भी अब तालिब-ए-दीदार हैं किन के उन के
हम को अय्यार समझते हैं ये बे-मेहर 'निसार'
जो दग़ाबाज़ हैं सो यार हैं किन के उन के
ग़ज़ल
हम दिल ओ जाँ से ख़रीदार हैं किन के उन के
मोहम्मद अमान निसार