EN اردو
हम चटानों की तरह साहिल पे ढाले जाएँगे | शाही शायरी
hum chaTanon ki tarah sahil pe Dhaale jaenge

ग़ज़ल

हम चटानों की तरह साहिल पे ढाले जाएँगे

बेकल उत्साही

;

हम चटानों की तरह साहिल पे ढाले जाएँगे
फिर हमें सैलाब के धारे बहा ले जाएँगे

ऐसी रुत आई अँधेरे बन गए मिम्बर के बुत
गुंबद-ओ-मेहराब क्या जुगनू बचा ले जाएँगे

पहले सब ता'मीर करवाएँगे काग़ज़ के मकाँ
फिर हवा के रुख़ पे अंगारे उछाले जाएँगे

हम वफ़ादारों में हैं उस के मगर मश्कूक हैं
इक न इक दिन उस की महफ़िल से निकाले जाएँगे

जंग में ले जाएँगे सरहद पे सब तीर-ओ-तफ़ंग
हम तो अपने साथ मिट्टी की दुआ ले जाएँगे

शहर को तहज़ीब के झोंकों ने नंगा कर दिया
गाँव के सर का दुपट्टा भी उड़ा ले जाएँगे

दास्तान-ए-इश्क़ को 'बेकल' न दे गीतों का रूप
दोस्त हैं बेबाक सब लहजे चुरा ले जाएँगे