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हम भी नादाँ हैं समझते हैं कि छट जाएगी | शाही शायरी
hum bhi nadan hain samajhte hain ki chhaT jaegi

ग़ज़ल

हम भी नादाँ हैं समझते हैं कि छट जाएगी

आरिफ़ अब्दुल मतीन

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हम भी नादाँ हैं समझते हैं कि छट जाएगी
तीरगी नूर के पैकर में सिमट जाएगी

लोग कहते हैं मोहब्बत से तमन्ना जिस को
मेरी शह-ए-रग उसी तलवार से कट जाएगी

तुम जिसे बाँट रहे हो वो सितम-दीदा-ज़मीं
ज़लज़ला आएगा कुछ ऐसा कि फट जाएगी

क़ैद हूँ गुम्बद-ए-बे-दर में मिरी अपनी सदा
मुझ तक आएगी मगर आ के पलट जाएगी

बाँट जी भर के उसे दहर के महरूमों में
प्यार दौलत तो नहीं है कि जो घट जाएगी

बाद-ए-सरसर से न घबरा कि ये चल कर 'आरिफ़'
कितने चेहरों से नक़ाबों को उलट जाएगी