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हम अपनी जागती आँखों में ख़्वाब ले के चले | शाही शायरी
hum apni jagti aankhon mein KHwab le ke chale

ग़ज़ल

हम अपनी जागती आँखों में ख़्वाब ले के चले

मुनव्वर हाशमी

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हम अपनी जागती आँखों में ख़्वाब ले के चले
वो क्या सवाल थे जिन के जवाब ले के चले

पहन ली कर्ब की पोशाक राह-ए-हस्ती में
हम अपने वास्ते ख़ुद ही अज़ाब ले के चले

ये और बात के जुगनू असीर कर न सके
हथेलियों पे मगर आफ़्ताब ले के चले

वरक़ वरक़ पे सजाई है ख़ून की तहरीर
कि शे'र शे'र नया इंतिख़ाब ले के चले

जिधर जिधर से भी गुज़रे बिछा दिया सैलाब
हम अश्क ले के चले या चनाब ले के चले

उन्ही के हाथ 'मुनव्वर' लहूलुहान हुए
जो लोग मेरे चमन से गुलाब ले के चले