हम अपने दुख को गाने लग गए हैं
मगर इस में ज़माने लग गए हैं
किसी की तर्बियत का है करिश्मा
ये आँसू मुस्कुराने लग गए हैं
कहानी रुख़ बदलना चाहती है
नए किरदार आने लग गए हैं
ये हासिल है मिरी ख़ामोशियों का
कि पत्थर आज़माने लग गए हैं
ये मुमकिन है किसी दिन तुम भी आओ
परिंदे आने जाने लग गए हैं
जिन्हें हम मंज़िलों तक ले के आए
वही रस्ता बताने लग गए हैं
शराफ़त रंग दिखलाती है 'दानिश'
कई दुश्मन ठिकाने लग गए हैं
ग़ज़ल
हम अपने दुख को गाने लग गए हैं
मदन मोहन दानिश