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हम अपने आप से बेगाने थोड़ी होते हैं | शाही शायरी
hum apne aap se begane thoDi hote hain

ग़ज़ल

हम अपने आप से बेगाने थोड़ी होते हैं

अनवर शऊर

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हम अपने आप से बेगाने थोड़ी होते हैं
सुरूर-ओ-कैफ़ में दीवाने थोड़ी होते हैं

तबाह सोच-समझ कर नहीं हुआ जाता
जो दिल लगाते है फ़रज़ाने थोड़ी होते हैं

बराह-ए-रास्त असर डालते हैं सच्चे बोल
किसी दलील से मनवाने थोड़ी होते हैं

जो लोग आते हैं मिलने तिरे हवाले से
नए तो होते हैं अनजाने थोड़ी होते हैं

इसी ज़मीं के ग़ज़ालों से होते हैं आबाद
दिलों के दश्त परी-ख़ाने थोड़ी होते हैं

हमेशा हाथ में रहते हैं फूल उन के लिए
किसी को भेज के मंगवाने थोड़ी होते हैं

ख़याल-ओ-ख़्वाब की रहती है गर्म-बाज़ारी
दिमाग़-ओ-दिल कभी वीराने थोड़ी होते हैं

न आएँ आप तो महफ़िल में कौन आता है
जले न शम्अ' तो परवाने थोड़ी होते हैं

किसी ग़रीब को ज़ख़्मी करे कि क़त्ल करे
निगाह-ए-नाज़ पे जुर्माने थोड़ी होते हैं

'शुऊर' तुम ने ख़ुदा जाने क्या किया होगा
ज़रा सी बात के अफ़्साने थोड़ी होते हैं