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हम अपने आप को इक मसअला बना न सके | शाही शायरी
hum apne aapko ek masala bana na sake

ग़ज़ल

हम अपने आप को इक मसअला बना न सके

वसीम बरेलवी

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हम अपने आप को इक मसअला बना न सके
इसी लिए तो किसी की नज़र में आ न सके

हम आँसुओं की तरह वास्ते निभा न सके
रहे जिन आँखों में उन में ही घर बना न सके

फिर आँधियों ने सिखाया वहाँ सफ़र का हुनर
जहाँ चराग़ हमें रास्ता दिखा न सके

जो पेश पेश थे बस्ती बचाने वालों में
लगी जब आग तो अपना भी घर बचा न सके

मिरे ख़ुदा किसी ऐसी जगह उसे रखना
जहाँ कोई मिरे बारे में कुछ बता न सके

तमाम उम्र की कोशिश का बस यही हासिल
किसी को अपने मुताबिक़ कोई बना न सके

तसल्लियों पे बहुत दिन जिया नहीं जाता
कुछ ऐसा हो के तिरा ए'तिबार आ न सके