हम अहल-ए-ज़र्फ़ हैं यूँ ही ख़फ़ा नहीं होते
वफ़ा-शिआर कभी बेवफ़ा नहीं होते
कुछ ऐसे आँसू भी रहते हैं मेरी पलकों पर
जुदा तो होते हैं फिर भी जुदा नहीं होते
जो ज़ख़्म तुम ने नवाज़े हैं बे-सबब हम को
किसी भी दर्द का वो मसअला नहीं होते
कहा ये किस ने कहाँ से ये सुन के आए हो
जो बे-सहारा हैं वो आसरा नहीं होते
हर एक गाम पे जो लड़खड़ाए रहते हैं
ग़ुबार-ए-राह में वो रास्ता नहीं होते
चराग़ तो हैं मगर इतने धुँदले धुँदले क्यूँ
'किरन' तुम्हारे तो ये नक़्श-ए-पा नहीं होते

ग़ज़ल
हम अहल-ए-ज़र्फ़ हैं यूँ ही ख़फ़ा नहीं होते
कविता किरन