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हैरत से तक रहा है जहान-ए-वफ़ा मुझे | शाही शायरी
hairat se tak raha hai jahan-e-wafa mujhe

ग़ज़ल

हैरत से तक रहा है जहान-ए-वफ़ा मुझे

साग़र निज़ामी

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हैरत से तक रहा है जहान-ए-वफ़ा मुझे
तुम ने बना दिया है मोहब्बत में क्या मुझे

हर मंज़िल-ए-हयात से गुम कर गया मुझे
मुड़ मुड़ के राह में वो तिरा देखना मुझे

कैफ़-ए-ख़ुदी ने मौज को कश्ती बना दिया
होश-ए-ख़ुदा है अब न ग़म-ए-नाख़ुदा मुझे

साक़ी बने हुए हैं वो साग़र शब-ए-विसाल
इस वक़्त कोई मिरी क़िस्म देख जा मुझे