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हैरत-अंगेज़ हुआ चाहती है | शाही शायरी
hairat-angez hua chahti hai

ग़ज़ल

हैरत-अंगेज़ हुआ चाहती है

नवीन सी. चतुर्वेदी

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हैरत-अंगेज़ हुआ चाहती है
आह ज़रख़ेज़ हुआ चाहती है

अपनी थोड़ी सी धनक दे भी दे
रात रंग-रेज़ हुआ चाहती है

आबजू देख तिरे होते हुए
आग आमेज़ हुआ चाहती है

बस पियाला ही तलबगार नहीं
मय भी लबरेज़ हुआ चाहती है

रौशनी तुझ से भला क्या परहेज़
तू ही परहेज़ हुआ चाहती है