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हैरान सारा शहर था जिस की उड़ान पर | शाही शायरी
hairan sara shahr tha jis ki uDan par

ग़ज़ल

हैरान सारा शहर था जिस की उड़ान पर

हज़ीं लुधियानवी

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हैरान सारा शहर था जिस की उड़ान पर
पंछी वो फड़ फड़ा के गिरा साएबान पर

शायद उसी से ज़ेहन का जंगल महक उठे
लफ़्ज़ों के गुल खिलाइए शाख़-ए-ज़बान पर

किस दिल की राख जुज़्व-ए-रग-ए-संग हो गई
सूरज-मुखी का फूल खिला है चटान पर

इक दिन उसे ज़मीं की कशिश खींच लाएगी
कब तक रहेगा तेरा ख़याल आसमान पर

आवाज़ की महक न कभी क़ैद हो सकी
पहरे लगे हज़ार गुलों की ज़बान पर