हैराँ है जबीं आज किधर सज्दा रवा है
सर पर हैं ख़ुदावंद सर-ए-अर्श ख़ुदा है
कब तक इसे सींचोगे तमन्ना-ए-समर में
ये सब्र का पौदा तो न फूला न फला है
मिलता है ख़िराज उस को तिरी नान-ए-जवीं से
हर बादशह-ए-वक़्त तिरे दर का गदा है
हर एक उक़ूबत से है तल्ख़ी में सवा-तर
वो रंग जो ना-कर्दा गुनाहों की सज़ा है
एहसान लिए कितने मसीहा-नफ़सों के
क्या कीजिए दिल का न जला है न बुझा है
ग़ज़ल
हैराँ है जबीं आज किधर सज्दा रवा है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़