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हैं ये रिंद-ओ-साक़ी हिसाब में | शाही शायरी
hain ye rind-o-saqi hisab mein

ग़ज़ल

हैं ये रिंद-ओ-साक़ी हिसाब में

मुकेश आलम

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हैं ये रिंद-ओ-साक़ी हिसाब में
कभी सोचा भी न था ख़्वाब में

कि हज़ार प्यालों का है नशा
तेरे एक क़तरा शराब में

उन्हें मौत देगी ये दर्द क्या
है सुकून जिन को अज़ाब में

मुझे रास आए क़लंदरी
तिरी राह-ए-ख़ाना-ख़राब में

उसे ख़ाक मिलनी हैं मंज़िलें
जो अटक गया हो रिकाब में

यहाँ क्या मिला है सवाब को
यहाँ क्या मिलेगा सवाब में