हैं शाम ही से रंज-ओ-क़लक़ जान पर अब तो
हम को नहीं उम्मीद कि पकड़ें सहर अब तो
दीवाना कोई होए तो हो उस की बला से
अपने ही परी-पन पे पड़ी है नज़र अब तो
साए से चहक जाते थे या फिरते हो शब-भर
वल्लाह कि तुम हो गए कितने निडर अब तो
जाँ को तो ख़बर भी नहीं ऊपर ही से ऊपर
दिल ले गई इस शोख़ की नीची नज़र अब तो
मय-ख़ाना-ओ-मय-ए-इश्क़-ए-बुताँ और ये सिन-ओ-साल
'तनवीर' ख़ुदा का भी ज़रा ख़ौफ़ कर अब तो

ग़ज़ल
हैं शाम ही से रंज-ओ-क़लक़ जान पर अब तो
तनवीर देहलवी