हैं सारे इंकिशाफ़ अपने हैं सारे मुम्किनात अपने
हम इस दुनिया का सारा इल्म ले जाएँगे सात अपने
चमक वैसी न माथे पर दमक वैसी न चेहरे पर
सितारे किस के घर जाने लुटा आई है रात अपने
न होगी दिलकशी दुनिया में इक दिन वो भी आएगा
कि सारे राज़ उगल देगी किसी दिन काएनात अपने
नहीं गर देख सकती मौत से लड़ते हुए मुझ को
तो फिर ऐ ज़िंदगी ले जा तू सारे इल्तिफ़ात अपने
खुला है उम्र की शाम-ए-हज़ीं में राज़ ये 'पाशी'
कि हर दम मौत को भी साथ रखती है हयात अपने

ग़ज़ल
हैं सारे इंकिशाफ़ अपने हैं सारे मुम्किनात अपने
कुमार पाशी