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हैं सारे इंकिशाफ़ अपने हैं सारे मुम्किनात अपने | शाही शायरी
hain sare inkishaf apne hain sare mumkinat apne

ग़ज़ल

हैं सारे इंकिशाफ़ अपने हैं सारे मुम्किनात अपने

कुमार पाशी

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हैं सारे इंकिशाफ़ अपने हैं सारे मुम्किनात अपने
हम इस दुनिया का सारा इल्म ले जाएँगे सात अपने

चमक वैसी न माथे पर दमक वैसी न चेहरे पर
सितारे किस के घर जाने लुटा आई है रात अपने

न होगी दिलकशी दुनिया में इक दिन वो भी आएगा
कि सारे राज़ उगल देगी किसी दिन काएनात अपने

नहीं गर देख सकती मौत से लड़ते हुए मुझ को
तो फिर ऐ ज़िंदगी ले जा तू सारे इल्तिफ़ात अपने

खुला है उम्र की शाम-ए-हज़ीं में राज़ ये 'पाशी'
कि हर दम मौत को भी साथ रखती है हयात अपने