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हैं लापता ज़माने से सारे के सारे ख़्वाब | शाही शायरी
hain lapata zamane se sare ke sare KHwab

ग़ज़ल

हैं लापता ज़माने से सारे के सारे ख़्वाब

नोमान शौक़

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हैं लापता ज़माने से सारे के सारे ख़्वाब
किस के बदन से लिपटे हुए हैं हमारे ख़्वाब

मैं शाम की बलाएँ लूँ या बोसा सुब्ह का
बिखरे पड़े हैं रात के दोनों किनारे ख़्वाब

तुम छत पे आते जाते रहोगे इसी तरह
तो देखने लगेंगे सभी के सितारे ख़्वाब

माना सजा-सँवार के भेजे गए हो तुम
आईने भी तो देख रहे हैं तुम्हारे ख़्वाब

अपनी तो सारी उम्र पस-ओ-पेश में कटी
सौ बार ज़ेब-ए-तन किए सौ बार उतारे ख़्वाब

नज़रें भी क्या गुज़ारते हम बोरिया-नशीं
उस ने भी सरफ़राज़ किए सब गुज़ारे ख़्वाब

मुश्किल ये आ पड़ी है कि किस देस जाएँगे
हम तार-तार लोग लिए इतने सारे ख़्वाब