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हैं जाने-बूझे यार हम, हम साथ अन-जानी न कर | शाही शायरी
hain jaane-bujhe yar ham, hum sath an-jaani na kar

ग़ज़ल

हैं जाने-बूझे यार हम, हम साथ अन-जानी न कर

मिर्ज़ा अज़फ़री

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हैं जाने-बूझे यार हम, हम साथ अन-जानी न कर
दर से हमें दुरकार ना जानी ये नादानी न कर

इक दिल था जो तुझ को दिया है और दिल जो और ले
हम चाहें तुझ छुट और को ये बात दीवानी न कर

अर्श-ए-इलाहुलआलमीं जा-ए-अदब है खोल झड़
है ख़ाना-ए-दिल ग़र्क़ पर देख अश्क तुग़्यानी न कर

हैं झोंपड़ियाँ हम-साए में मत आग इन को लग उठे
निचली तू रह सीने में टुक, टुक आह जौलानी न कर

हम इश्क़ तेरे हाथ से क्या क्या न देखीं हालतें
देख आब-दीदा ख़ूँ न हो ख़ून-ए-जिगर पानी न कर

आँसू के है दरिया पे आ दिल का सफ़ीना तर रहा
अब 'अज़फ़री' मत आह भर कश्ती ये तूफ़ानी न कर