हैं और कई रेत के तूफ़ाँ मिरे आगे
फैलेगा अभी और बयाबाँ मिरे आगे
बाहर नहीं कोई भी मिरी हद-ए-नज़र से
मख़्फ़ी है कोई कोई नुमायाँ मिरे आगे
हस्ती मिरी सहरा है सराब उस का मुक़द्दर
आख़िर उसे होना है पशेमाँ मिरे आगे
हूँ मील के पत्थर की तरह राहगुज़र में
मंज़िल पे नज़र रखते हैं इंसाँ मिरे आगे
तय हो न सकी दूरी-ए-मंज़िल ये अलग है
हर मोड़ पे रौशन रहा इम्काँ मिरे आगे
काँधे पे मिरे बोझ रहा रख़्त-ए-सफ़र का
यूँ निकला किए बे-सर-ओ-सामाँ मिरे आगे
जो सुल्ह-ओ-सफ़ाई में हैं पीछे अभी 'राही'
रहते हैं बहम दस्त-ओ-गरेबाँ मिरे आगे
ग़ज़ल
हैं और कई रेत के तूफ़ाँ मिरे आगे
ग़ुलाम मुर्तज़ा राही