हैफ़ है ऐसी ज़िंदगानी पर
कि फ़िदा हो न यार-ए-जानी पर
तेरी गुल-कारी अब्र हो बर्बाद
गर फ़िदा हो न यार-ए-जानी पर
हाल सुन सुन के हँस दिया मेरा
कुछ तो आया है मेहरबानी पर
ख़ून कुश्तों के हो गया दिल का
तेरी दस्तार-ए-अर्ग़वानी पर
रात 'बेदार' वो मह-ए-ताबाँ
सुन के रोया मिरी कहानी पर
ग़ज़ल
हैफ़ है ऐसी ज़िंदगानी पर
मीर मोहम्मदी बेदार