है याद-ए-यार से इक आग मुश्तइ'ल दिल में
अजब है ख़ुल्द-ओ-जहन्नम हैं मुत्तसिल दिल में
जो चुपके चुपके हमें कुछ कहे वो अप सुने
पड़े उसी को जो कोसेगा हम को दिल दिल में
करोगे अब भी बुराई मय-ए-मुग़ाँ की शैख़
न कहिए मुँह से मगर होगे तो ख़जिल दिल में
गए वो पानी तो मुल्तान अब गिनो मौजें
कहाँ वो जोश अब ऐ अश्क पा-ब-गुल दिल में
उलू ये ख़ूब हुआ आप तुम चले आए
मैं कहता ही था कि आज उन से जा के मिल दिल में
पकड़ जो कल लिया चुस्की लगाते ज़ाहिद को
बताऊँ क्या कि हुआ कैसा मुन्फ़इल दिल में
ग़ज़ल
है याद-ए-यार से इक आग मुश्तइ'ल दिल में
दत्तात्रिया कैफ़ी