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है वही मार्का-ए-नेकी-ओ-शर मेरे बा'द | शाही शायरी
hai wahi marka-e-neki-o-shar mere baad

ग़ज़ल

है वही मार्का-ए-नेकी-ओ-शर मेरे बा'द

अली जव्वाद ज़ैदी

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है वही मार्का-ए-नेकी-ओ-शर मेरे बा'द
थम न जाएँ कहीं यारान-ए-सफ़र मेरे बा'द

कम हैं ऐसे जो करें अर्ज़-ए-हुनर मेरे बा'द
आज ग़मनाक से हैं अहल-ए-नज़र मेरे बा'द

चंद साअ'त के लिए रुक भी गया रो भी लिया
कारवाँ फिर भी है सरगर्म-ए-सफ़र मेरे बा'द

जज़्ब थीं जिस में मिरे ख़ून-ए-वफ़ा की छींटें
बन गया सज्दा-गह-ए-ख़ल्क़ वो दर मेरे बा'द

हिज्र की रात लरज़ता ही रहा पलकों पर
क़तरा-ए-अश्क बना नज्म-ए-सहर मेरे बा'द

शायद ऐ दोस्त तमाशाओं के हंगामों में
याद आए मिरी मोहतात नज़र मेरे बा'द

आज अंजान बनो भूल भी जाओ लेकिन
क्या करोगे मिरी याद आए अगर मेरे बा'द

क्यूँ बिछाते हो मिरी राह में काँटे यारो
ख़ैर जारी से बदल जाएगा शर मेरे बा'द

अब भी शोर-ए-क़दम-ए-राह-रवाँ है तो वही
फिर भी सूनी है तिरी राहगुज़र मेरे बा'द

क्या कोई और बनाता था नशेमन अपना
फिर उसी शाख़ पे है रक़्स-ए-शरर मेरे बा'द

इक मिरी याद की मशअ'ल के सिवा कुछ भी न हो
रात इस तरह से भी होगी बसर मेरे बा'द

ये तमव्वुज ये तलातुम ये शहादत ये शुहूद
ख़त्म है मंज़िल-ए-अव्वल का सफ़र मेरे बा'द

अश्क आँखों में भरे उस ने भी देखा 'ज़ैदी'
आज महफ़िल को ब-अंदाज़-ए-दिगर मेरे बा'द