EN اردو
है वाक़िआ कुछ और रिवायत कुछ और है | शाही शायरी
hai waqia kuchh aur riwayat kuchh aur hai

ग़ज़ल

है वाक़िआ कुछ और रिवायत कुछ और है

अंजुम रूमानी

;

है वाक़िआ कुछ और रिवायत कुछ और है
यारों को यानी हम से शिकायत कुछ और है

समझी गई जो बात हमारी ग़लत तो क्या
याँ तर्जुमा कुछ और है आयत कुछ और है

कुछ कम नहीं बला से ख़िलाफ़त ज़मीं की भी
यारब मिरी सज़ा में रिआयत कुछ और है?

ऐ गर्दिश-ए-ज़माना तिरा दौर हो चुका?
या हाल पर हमारे इनायत कुछ और है

करते हो जो बयान तुम 'अंजुम' बजा मगर
तारीख़ जो लिखेगी हिकायत कुछ और है