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है उस गुल-रंग का दीवार होना | शाही शायरी
hai us gul-rang ka diwar hona

ग़ज़ल

है उस गुल-रंग का दीवार होना

मुनीर नियाज़ी

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है उस गुल-रंग का दीवार होना
कि जैसे ख़्वाब से बेदार होना

बताती है महक दस्त-ए-हिना की
किसी दर का पस-ए-दीवार होना

उसे रखता है सहराओं में हैराँ
दिल-ए-शाइर का पुर-असरार होना

कमाल-ए-शौक़ का हासिल यही है
हमारा शहर से बे-ज़ार होना

फ़िराक़ आग़ाज़ है उन साअ'तों का
है आख़िर जिन का वस्ल-ए-यार होना

यही होना था आख़िर दश्त-ए-ग़म को
हमारे हाथ से गुलज़ार होना

मोहब्बत का सबब है बे-नियाज़ी
कशिश उस की है बस दुश्वार होना

'मुनीर' अच्छा नहीं लगता ये तेरा
किसी के हिज्र में बीमार होना