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है तेरी ही काएनात जी में | शाही शायरी
hai teri hi kaenat ji mein

ग़ज़ल

है तेरी ही काएनात जी में

जुरअत क़लंदर बख़्श

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है तेरी ही काएनात जी में
जी तुझ से है तेरी ज़ात जी में

तू ने किया क़त्ल गो ब-ज़िल्लत
समझा मैं इसे नजात जी में

क्यूँ ग़म ये मुझी पे मेहरबाँ है
सब शाद हैं ज़ी-हयात जी में

इस तंग-दहान के सुख़न पर
याँ गुज़रे हैं सो निकात जी में

हर-दम ब-हज़ार जल्वा-ए-नौ
देखूँ हूँ तिरी सिफ़ात जी में

दम आँखों में आ रहा है 'जुरअत'
गुज़रे है ये आज रात जी में

आ जावे तो हाल-ए-दिल सुना लें
रह जाए न जी की बात जी में