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है तक़ाज़ा-ए-जुनूँ सिलसिला-वार मिले | शाही शायरी
hai taqaza-e-junun silsila-war mile

ग़ज़ल

है तक़ाज़ा-ए-जुनूँ सिलसिला-वार मिले

मुख़तार शमीम

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है तक़ाज़ा-ए-जुनूँ सिलसिला-वार मिले
ग़म की ज़ंजीर मिले दर्द की झंकार मिले

तेशा-ए-नूर लिए सुब्ह का पैग़ाम लिए
कोई बेदार मिले कोई तो होश्यार मिले

दश्त-ए-वहशत की क़सम आबला-पाई की क़सम
राह में जब न कोई साया-ए-दीवार मिले

हम-सफ़र हम ने जहाँ नक़्श-ए-तमन्ना पाया
हम रह-ए-ज़ीस्त के इस मोड़ पे बेकार मिले

उन के चेहरों पे थे इख़्लास-ओ-मोहब्बत के नुक़ूश
दिल में झाँका तो मिरे यार ही अग़्यार मिले