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है ता-हद्द-ए-नज़र नीला समुंदर | शाही शायरी
hai ta-hadd-e-nazar nila samundar

ग़ज़ल

है ता-हद्द-ए-नज़र नीला समुंदर

कुमार पाशी

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है ता-हद्द-ए-नज़र नीला समुंदर
बदन में फ़ड़फ़ड़ाता है कबूतर

अब इस का नाम तक बाक़ी नहीं है
वही जो जी रहा था मेरे अंदर

बता ऐ दिल मिरे बुझते हुए दिल
ये किस आसेब का साया है तुझ पर

मआ'नी का है बातिन से तअ'ल्लुक़
बहुत कुछ कह गए चुप चुप से मंज़र

मिरी दहलीज़ पर चुपके से 'पाशी'
ये किस ने रख दी मेरी लाश ला कर