है शौक़ तो बे-साख़्ता आँखों में समो लो
यूँ मुझ को निगाहों के तराज़ू में न तोलो
मैं भी हूँ किसी आँख से टपका हुआ मोती
मुझ को भी किसी रेशमी डोरी में पिरो लो
लाया हूँ मैं ख़ुद दिल को हथेली पे सजा कर
इस जिंस के बाज़ार में क्या दाम हैं बोलो
मैं काँच के टुकड़ों की तरह बिखरा पड़ा हूँ
भूले से कभी मुझ को भी पाँव में चुभो लो
फिर जानिए कब वक़्त की रफ़्तार थमेगी
ठहरे हुए लम्हे को निगाहों में पिरो लो
अब कोई बिखेरेगा कड़ी धूप में गेसू
ख़ुद अपने ही दिल के किसी तह-ख़ाने में सो लो
दिन भर तो 'रशीद' आप को हँसना ही पड़ेगा
रोना है तो अब रात की तन्हाई में रो लो

ग़ज़ल
है शौक़ तो बे-साख़्ता आँखों में समो लो
रशीद क़ैसरानी