है रश्क-ए-वस्ल से ग़म-ए-दिलदार ही भला
राहत से ऐसी हम को वो दिल-आज़ार ही भला
दुनिया में यारो यार-ए-वफ़ादार ही नहीं
और जो न हो तो रहना है बे-यार ही भला
माशूक़ का नज़ारा मयस्सर हो या न हो
आशिक़ हमेशा तालिब-ए-दीदार ही भला
ज़ारी पे मेरी रहम भी कर आ ख़ुदा को मान
काफ़िर रहेगा हम से तू बेज़ार ही भला
अतवार-ए-बद है ग़ैर से ख़ुल्ता मिरे हुज़ूर
इस के एवज़ न कर तू हमें प्यार ही भला
ज़ख़्मों से ग़म के तेरा कलेजा तो छिल गया
बुलबुल है ऐसे गुल से तुझे ख़ार ही भला
इक जुरआ दर्द-ए-मय पे हो इतना न तल्ख़-ओ-तुंद
साक़ी मैं ऐसे मस्त से होश्यार ही भला
'हसरत' बुरा किया मैं उठाया दिल उस से क्यूँ
दिलदार गर न था तो दिल-आज़ार ही भला
ग़ज़ल
है रश्क-ए-वस्ल से ग़म-ए-दिलदार ही भला
हसरत अज़ीमाबादी