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है राह-रौ के हुए हादसात की दीवार | शाही शायरी
hai rah-rau ke hue hadsat ki diwar

ग़ज़ल

है राह-रौ के हुए हादसात की दीवार

हनीफ़ कैफ़ी

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है राह-रौ के हुए हादसात की दीवार
गिराए कौन ये गर्द-ए-हयात की दीवार

सहर हमारे मुक़द्दर से दूर होती गई
बुलंद होती गई रोज़ रात की दीवार

मिटे जो ये हद्द-ए-फ़ासिल तो आप तक पहुँचें
हमारे बीच में हाइल है ज़ात की दीवार

अना अना के मुक़ाबिल है राह कैसे खुले
तअल्लुक़ात में हाइल है बात की दीवार

न जाने कौन से झोंके में गिर पड़े 'कैफ़ी'
शिकस्ता होने लगी है हयात की दीवार