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है क़ानून-ए-फ़ितरत कोई क्या करेगा | शाही शायरी
hai qanun-e-fitrat koi kya karega

ग़ज़ल

है क़ानून-ए-फ़ितरत कोई क्या करेगा

वलीउल्लाह वली

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है क़ानून-ए-फ़ितरत कोई क्या करेगा
जो होता है दुनिया में हो कर रहेगा

न नेज़े पे जब तक तिरा सर चढ़ेगा
तिरे सर को सर कोई कैसे कहेगा

मैं अंजाम-ए-हक़-गोई से बा ख़बर हूँ
पता है कि इक दिन मिरा सर कटेगा

वही रोटियाँ जिन से छीनी गई हैं
अगर उठ खड़े हों तो कैसा रहेगा

तिरा हुस्न है शोला-ए-आसमानी
कोई उस से आख़िर कहाँ तक बचेगा

यक़ीनन कहीं आज बिजली गिरेगी
यक़ीनन कोई आशियाना जलेगा

ये दर्द-ए-मोहब्बत है मेरे मसीहा
दवा से न कोई दुआ से घटेगा

मोहब्बत की क़िस्मत में आवारगी है
कहाँ तक कोई उस के पीछे पड़ेगा

'वली' जो है ना-आश्ना-ए-मोहब्बत
मिरे दिल की धड़कन वो क्यूँ कर सुनेगा