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है नींद अभी आँख में पल भर में नहीं है | शाही शायरी
hai nind abhi aankh mein pal bhar mein nahin hai

ग़ज़ल

है नींद अभी आँख में पल भर में नहीं है

आसिम वास्ती

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है नींद अभी आँख में पल भर में नहीं है
करवट कोई आराम की बिस्तर में नहीं है

साहिल पे जला दे जो पलटने का वसीला
अब ऐसा जियाला मिरे लश्कर में नहीं है

फैलाव हुआ है मिरे इदराक से पैदा
वुसअ'त मिरे अंदर है समुंदर में नहीं है

सीखा न दुआओं में क़नाअ'त का सलीक़ा
वो माँग रहा हूँ जो मुक़द्दर में नहीं है

रख उस पे नज़र जो कहीं ज़ाहिर में है पिन्हाँ
वो भी तो कभी देख जो मंज़र में नहीं है

यूँ धूप ने अब ज़ाविया बदला है कि 'आसिम'
साया भी मिरा मेरे बराबर में नहीं है