है मिरे पहलू में और मुझ को नज़र आता नहीं
इस परी का सेहर यारो कुछ कहा जाता नहीं
अश्क की बारिश में दिल से ग़म निकल आता नहीं
घर से बाहर मेंह बरसने में कोई जाता नहीं
चाक-ए-जेब अपने को मैं भी जूँ गरेबान-ए-सहर
नासेहा ता-दामन-ए-महशर तू सिलवाता नहीं
शम्अ' साँ रिश्ते पर उल्फ़त के लगा देते हैं सर
आशिक़ और माशूक़ सा भी दूसरा नाता नहीं
बस-कि तेरे हिज्र में है ना-गवारा अक्ल-ओ-शर्ब
दिल ब-जुज़ ख़ून-ए-जिगर ऐ जान कुछ खाता नहीं
मैं ही तुम सब का बना तीर-ए-मलामत का निशाँ
उस बुत-ए-सरकश को यारो कोई समझाता नहीं
वाए ये ग़फ़लत कि दरिया बीच क़तरे की तरह
आप ही में आप को ढूँडूँ हूँ और पाता नहीं
तर्क-ए-इश्क़ उस सर्व-ए-बाला का किया है जब से दिल
आलम-ए-बाला से बालाई ख़बर लाता नहीं
बस-कि है हम-रंग वाशुद से 'मुहिब' उस बाग़ में
दिल को ग़ैर-अज़-ग़ुंचा-ए-तस्वीर कुछ भाता नहीं
ग़ज़ल
है मिरे पहलू में और मुझ को नज़र आता नहीं
वलीउल्लाह मुहिब