है ख़ाक-बसर सबा मिरे बा'द
गुलशन की फिर हवा मिरे बा'द
थी जा-ए-विसाल मंज़िल-ए-गोर
हासिल हुआ मुद्दआ' मिरे बा'द
ऐ तप न जलाना उस्तुख़्वाँ को
मायूस न हो हुमा मिरे बा'द
क़ातिल ने बहाए लाश पर अश्क
था बस यही ख़ूँ-बहा मिरे बा'द
यूँ ख़ाक में मैं मिला कि उस ने
पाया न मिरा पता मिरे बा'द
की दाग़ ने ख़ाक से तराविश
गुल क़ब्र से ये खिला मिरे बा'द
औरों पे करोगे जब जफ़ाएँ
याद आएगी ये वफ़ा मिरे बा'द
गो मैं न रहा मगस की सूरत
शोहरा तो रहा मिरा मिरे बा'द
ऐ ग़म मिरी जान खा चुका तू
क्या होगी तेरी ग़िज़ा मिरे बा'द
बे-जुर्म किया जो क़त्ल मुझ को
जल्लाद ख़जिल हुआ मिरे बा'द
रूठा रहा यूँ तो उम्र भर वो
तुर्बत से गले लगा मिरे बा'द
बाक़ी न रहा जहाँ में 'आजिज़'
कुछ लुत्फ़ ज़बान का मिरे बा'द
ग़ज़ल
है ख़ाक-बसर सबा मिरे बा'द
पीर शेर मोहम्मद आजिज़