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है कौन शय जिस की ज़िद नहीं है जहाँ ख़ुशी है मलाल भी है | शाही शायरी
hai kaun shai jis ki zid nahin hai jahan KHushi hai malal bhi hai

ग़ज़ल

है कौन शय जिस की ज़िद नहीं है जहाँ ख़ुशी है मलाल भी है

मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल

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है कौन शय जिस की ज़िद नहीं है जहाँ ख़ुशी है मलाल भी है
ग़म-ए-जुदाई न खा तू ऐ दिल फ़िराक़ है तो विसाल भी है

जो टीका संदल का है जबीं पर तो पास अबरू की ख़ाल भी है
सिपहर-ए-ख़ूबी ये माह भी है सबील भी है हिलाल भी है

मिसाल दुर्र-ए-नजफ़ से क्या दूँ एज़ार-सादा को उस परी के
नहीं है बाल उस में नाम को भी ये ऐब है इस में बाल भी है

ख़ुदा ही जाने कि किस रविश से किया था मुर्ग़-ए-चमन ने नाला
पड़ी है ग़ुंचे की चीं जबीं पर तो रंग चेहरे का लाल भी है