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है जुस्तुजू अगर इस को इधर भी आएगा | शाही शायरी
hai justuju agar isko idhar bhi aaega

ग़ज़ल

है जुस्तुजू अगर इस को इधर भी आएगा

इफ़्तिख़ार नसीम

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है जुस्तुजू अगर इस को इधर भी आएगा
निकल पड़ा है तो फिर मेरे घर भी आएगा

तमाम उम्र कटेगी यूँही सराबों में
वो सामने भी न होगा नज़र भी आएगा

जो ग़म हुआ है नए शहर के मकानों में
वो देखने को कभी ये खंडर भी आएगा

रची है मेरे बदन में तमाम दिन की थकन
अभी तो रात का लम्बा सफ़र भी आएगा

ज़रा सी देर में हर शय चमक उठेगी 'नसीम'
सहर हुई है तो नूर-ए-सहर भी आएगा