है जितना ज़र्फ़ मिरा इतना ही सिला देना
न और कुछ तू उमीदों का सिलसिला देना
मिरी तो अर्ज़-ए-तमन्ना है क़द्रे पेचीदा
जवाब देना हो मुश्किल तो मुस्कुरा देना
किसी ग़रीब की दिल-जूई भी इबादत है
है नेक काम किसी रोते को हँसा देना
कुछ इस क़दर हुई कमज़ोर डोर रिश्तों की
है एक मो'जिज़ा टूटे सिरे मिला देना
तुम्हारा फ़र्ज़ है हालात-ए-हाज़िरा पे 'असर'
ग़ज़ल के शे'रों में इक तब्सिरा सुना देना

ग़ज़ल
है जितना ज़र्फ़ मिरा इतना ही सिला देना
मर्ग़ूब असर फ़ातमी