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है इतना ही अब वास्ता ज़िंदगी से | शाही शायरी
hai itna hi ab wasta zindagi se

ग़ज़ल

है इतना ही अब वास्ता ज़िंदगी से

हैरत गोंडवी

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है इतना ही अब वास्ता ज़िंदगी से
की मैं जी रहा हूँ तुम्हारी ख़ुशी से

ग़रीबी अमीरी है क़िस्मत का सौदा
मिलो आदमी की तरह आदमी से

बदल जाए गर बे-क़रारों की दुनिया
तो मैं अपनी दुनिया लुटा दूँ ख़ुशी से

समझते हैं हम खेल दुनिया के ग़म को
हमारी ख़ुशी है तुम्हारी ख़ुशी से

बजा चाँद रौशन है सूरज से लेकिन
ये सूरज चमकता है किस रौशनी से