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है इश्क़ में अबरू के जो काहीदा तन अपना | शाही शायरी
hai ishq mein abru ke jo kahida tan apna

ग़ज़ल

है इश्क़ में अबरू के जो काहीदा तन अपना

मुंशी बनवारी लाल शोला

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है इश्क़ में अबरू के जो काहीदा तन अपना
साया तिरी तलवार का होगा कफ़न अपना

उस मुँह की करें बात ज़रा मुँह को तो बनवाएें
ग़ुंचों से कहो साफ़ तो कर लें दहन अपना

पर खोले हुए करती हैं परियाँ मिरा मातम
इन्दर का उखाड़ा है ये बैत-उल-हज़न अपना

क्या कहते हैं सुन सुन के मिरे शेर को शोला
आदा के लिए तेग़ है गोया सुख़न अपना